राहुल अकेले लड़ रहे : हारने वालों ने क्यों साध ली चुप्पी ?

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■ हारने वाला कौनसा उम्मीदवार क्या कर रहा है ? पढिये हकीकत…

चंद्रपुर.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुनावी चोरी पर एक लेख लिखकर समूचे देश की राजनीति में भूचाल ला दिया। चुनाव आयोग भी सकते में आ गया। उनके द्वारा पूछे गये सवालों के जवाब नहीं दे पाने की स्थिति में देश में चुनावी प्रक्रिया को लेकर काफी असंतोष झलकने लगा। सोशल मीडिया और राजनीतिक खेमों में हलचल पैदा हो गई। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि नवंबर 2024 को महाराष्ट्र के जिन 288 में से 101 सीटों पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार उतारे थे, उनमें से केवल 15 ही सीट कांग्रेस जीत पाई। शेष 86 सीटों पर हारे हुए उम्मीदवारों के जुबान चुनाव आयोग से संबंधित आपत्तियों पर खामोश हैं। बात की जाएं चंद्रपुर जिले के 6 में से 5 सीटों पर चुनाव हार चुके उम्मीदवारों की, तो वे भी चुप्पी साधे बैठे हैं। शुरू-शुरू में तो शिकायतें और आवाज उठाने की यकीनन इन्होंने कोशिशें की। लेकिन वक्त के साथ सभी शिकायतें धूमिल पड़ गई। अब तो राहुल गांधी के सनसनीखेज दावे के बाद भी सुभाष धोटे, संतोष सिंह रावत, सतीश वारजुकर, प्रवीण पडवेकर एवं प्रवीण काकडे दूर-दूर तक इस मामले में कहीं भी मुंह खोलते हुए नजर नहीं आते, यह बेहद आश्चर्य की बात है।

हारने वाला कौनसा उम्मीदवार क्या कर रहा है ?
कांग्रेस को राहुल गांधी जैसे जांबाज और अपने हक-अधिकारों के साथ-साथ लोकतंत्र को बचाने वाले योद्धाओं की आवश्यकता हैं। लेकिन कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले और हारने के बाद चुप बैठने वालों की यहां कोई कमी नहीं है। बेशक हार चुके उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों में कांग्रेस का झंडा लेकर विविध गतिविधियों में काफी व्यस्त हैं। लेकिन इस बात से हैरानी होती है कि चुनावी चोरी और चुनाव आयोग द्वारा की गई कथित धांधली पर हारने वाले उम्मीदवारों ने आखिरकार लंबी चुप्पी साध क्यों ली है ? वह भी ऐसे समय में जब कांग्रेस के शिर्ष नेतृत्व राहुल गांधी की ओर से लगातार चुनावा अायोग पर हमले किये जा रहे हो तो प्रत्यक्ष धरातल पर महाराष्ट्र के 86 और इसमें शामिल चंद्रपुर जिले के 5 उम्मीदवारों की भूमिका निष्क्रिय और बेजान नजर आती है। आखिर इस निष्क्रियता का कारण क्या हो सकता है ?

सुभाष धोटे :
पूर्व विधायक सुभाष धोटे स्वयं चंद्रपुर जिले के कांग्रेस के ग्रामीण जिलाध्यक्ष हैं। चुनावों के समय में उन्होंने राजुरा विधानसभा क्षेत्र में मतदाता सूची में कथित नए मतदाताओं के पंजीकरण में बड़े पैमाने पर धांधली होने की शिकायतें की थी। इस क्षेत्र में उनका तगड़ा अनुभव हैं। लेकिन राहुल गांधी के चुनावी चोरी के सनसनीखेज खुलासे के बाद भी सुभाष धोटे कहीं भी इस मामले को लेकर सक्रिय दिखाई नहीं पड़ते। सोशल मीडिया पर जयंती संबंधित महापुरुषों के पोस्टर वायरल करना, शादी-ब्याह में शरीक होना, छात्रों का सत्कार, अस्पताल का उद्घाटन, किसानों की मांगें उठाना, सरकार को अनुरोध पत्र लिखना, विविध मांगों के लिए अधिकारियों को निवेदन भेजना आदि कामों में सुभाष धोटे अधिक व्यस्त नजर आते हैं। लेकिन अपने ही वोटों की कथित चोरी और खुद पर हुए अन्याय को लेकर इन्होंने चुप्पी साध ली है। इसका ठोस कारण उन्होंने जनता को बताना चाहिये। कम से कम राहुल गांधी के शंखनाद पर चुनाव आयोग की भूमिका पर एक बड़ा जनआंदोलन खड़ा करने की आवश्यकता है, जो वे कर नहीं पा रहे हैं।

संतोष सिंह रावत :
चंद्रपुर जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक अर्थात करोड़ों की लेन-देन वाली संस्था के मुखिया मतलब अध्यक्ष पद पर रहे संतोष सिंह रावत को चुनावी प्रक्रिया में कितनी रुचि हैं, यह तो वे ही जाने। लेकिन जनता को पता है कि उनकी अधिक रूचि CDCC बैंक संभालने में दिखाई पड़ती है। जब चुनावी रण चल रहा था तो वे तत्कालीन वन मंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधीर मुनगंटीवार से भिड़ गये। आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर शिकायतें की। चुनावी प्रचार थमने के बाद माइक, टेबल-कुर्सी लगाकर सभा लेने और सभा स्थल पर पहुंचकर हंगामा करने का प्रकरण गूंजा तो मामला थाने तक पहुंच गया। अपराध दर्ज हुए। परंतु जैसे ही चुनाव खत्म हो गया, वैसे ही रावत ठंडे पड़ गये। इसकी क्या वजहें हो सकती हैं, यह किसी को नहीं पता। लेकिन अब जब राहुल गांधी ने चुनाव आयोग के खिलाफ ताल ठोंक दी है तो रावत द्वारा साधी जा रही चुप्पी आम कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए चिंतन का विषय बना हुआ है। रावत के सोशल मीडिया पर भी महापुरुषों की जयंती के पोस्टर, बाघ हमले पर आंदोलन, सभा-सम्मेलनों में उपस्थिति नजर आती है। लेकिन खुद पर हुए कथित चुनावी अन्याय के खिलाफ अब उनकी आवाज कहीं खो गई है।

सतीश वारजुकर :
चिमूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से 2 बार चुनाव लड़ चुके और दोनों बार बेहद कम अंतर से पराजीत हुए सतीश वारजुकर ने दोनों बार के चुनावों में निर्वाचन आयोग तथा चुनावी प्रक्रिया पर अनेक सवाल उठाये थे। एक बार तो उन्होंने इस मुद्दे को लेकर पत्रकार परिषद भी ली थी। लेकिन बाद के दिनों में वे चुनाव आयोग के खिलाफ की लड़ाई को भूल गये। मसलन जनता तक इस कथित धांधली को पहुंचाने की जागृति के कार्य में वे पीछे हट गये। हैरत की बात है कि सतीश वारजुकर राहुल गांधी के फिटनेस से संबंधित जीम के फोटो, राजीव गांधी समेत तमाम नेताओं के फोटो आदि सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं। परंतु राहुल गांधी की ओर से महाराष्ट्र के चुनावों में मैच फिक्सिंग के कथित दावों पर वारजुकर अब खामोश नजर आते हैं। उनकी यह खामोशी आम जनता के लिए समझ से परे हैं।

प्रवीण पडवेकर :
कांग्रेस ने पहली बार चंद्रपुर से चुनाव लड़ने के लिए प्रवीण पडवेकर को टिकट दिया। इस दौरान वे कांग्रेस समेत यहां की आम जनता के आगे नतमस्तक हुए। एक सामान्य कार्यकर्ता का कांग्रेस ने सम्मान किया, इस बात को वे बड़े गर्व से बताते हुए जनता से वोट मांगने लगे। ताल ठोंककर भाजपा नेता किशोर जोरगेवार से पंगा लेने वाले और उनके हर पुराने एवं अधूरे वादों को लेकर बखिया उधड़ने वाले प्रवीण पडवेकर कांग्रेस के प्रति कृतज्ञता तो बहुत दिखाया करते थे, लेकिन अब जब राहुल गांधी महाराष्ट्र के चुनावों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं तो प्रवीण पडवेकर गायब नजर आते हैं। चुनावी चोरी जैसे गंभीर मसले पर पडवेकर का नदारद होना न केवल आश्चर्य की बात है, बल्कि यह चिंतन का भी विषय है।

प्रवीण काकडे :
कांग्रेस सांसद प्रतीभा धानोरकर के भाई प्रवीण काकडे का वैसे तो कांग्रेस में कोई खास योगदान कहीं नजर नहीं आता है। अपने परिजनों के राजनीतिक रसूख के चलते भले ही कांग्रेस की ओर से प्रवीण काकडे को वरोरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए टिकट दिया गया हो, लेकिन चुनावी रण के बाद और उससे पहले भी उनकी सक्रियता राजनीति में दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं पड़ती। डॉ. विश्वास झाडे, महेश मेंढे की तरह ही उनकी उम्मीदवारी आयी और चली गई, यह प्रतीत होता है। जनता के किसी अहम मुद्दे को लेकर वे मुखर हुए, कोई आंदोलन किया या किसी मंच पर कांग्रेस की भूमिका रखते हुए संगठन को आगे बढ़ाया, ऐसा कुछ भी कहीं भी नजर नहीं आता। सांसद प्रतीभा धानोरकर के कार्य, पोस्ट और रिल्स को वायरल करने तक ही प्रवीण काकडे सीमित दिख रहे हैं। राहुल गांधी के चुनावी भंडाफोड़ के रण को आगे बढ़ाने में काकडे की भूमिका शून्य नजर आ रही है, जो बेहद चिंताजनक बात है।