धन की लूट या नोटों का सिंचन : 372 करोड़ की गोसीखुर्द 11,500 करोड़ की हुई और 37 साल से अधूरी

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  •   भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का सपना आज भी पूरा नहीं कर पाएं विदर्भ के नेतागण
  • चंद्रपुर जिले की हजारों हेक्टेयर भूमि अधिग्रहण में चली गई, फिर भी सिंचाई की समस्या कायम
  • बाढ़ का दंश भी झेलेंगे, बावजूद प्रोजेक्ट पूरा नहीं कर पा रही हमारी सरकारें 

चंद्रपुर :

एक ऐसी परियोजना जो पिछले 37 वर्षों से धन की कमी के कारण अधूरी पड़ी है। सरकारें आयी, चली गई। इसे सरकारों की नाकामी कहे या लेटलतीफी, जनता की मेहनत और टैक्स का पैसा जो पहले 372 करोड़ के बजट पर निर्धारित हुआ था, वह आज बढ़कर 11,500 करोड़ का हो गया। यह अतिरिक्त फंड, जनता के धन की लूट है या नोटों का सिंचन चल रहा है ? हम बात कर रहे हैं गोसीखुर्द की। जी हां, गोसीखुर्द बांध, जिसे इंदिरा सागर परियोजना के नाम से भी जाना जाता है, महाराष्ट्र के चंद्रपुर और भंडारा जिलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। चंद्रपुर जिले पर इसके कुछ सकारात्मक के साथ-साथ नकारात्मक भी प्रभाव है। आइये, इस लूट तंत्र को बारीकी से समझते हैं।

गोसीखुर्द परियोजना का क्या हुआ?

पूर्व विदर्भ में जल स्रोत प्रचुर मात्रा में हैं। वैनगंगा नदी पर स्थित गोसीखुर्द परियोजना जल सिंचन की समस्या को हल करने के लिए एक महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजना थी, लेकिन यह अभी तक पूरी नहीं हुई है। भंडारा, नागपुर और चंद्रपुर जिलों में सिंचाई सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से इंदिरासागर या गोसीखुर्द (गोसेखुर्द) बांध को एक राष्ट्रीय परियोजना के रूप में स्थापित किया गया था। इस बांध की आधारशिला 23 अक्टूबर 1984 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रखी थी। इस परियोजना के तहत 92 मीटर ऊंचा और 653 मीटर लंबा कन्जेंट ग्रेविटी बांध बनाया गया है। इस परियोजना को 249 गांवों के पुनर्वास के बाद पूरा किया गया था। इसकी अनुमानित लागत ₹ 372.22 करोड़ थी। लेकिन यह परियोजना पूरी न होने के कारण इसकी लागत बढ़ती गई और 2010 तक ₹ 11,500 करोड़ तक पहुंच गई। परियोजना का लगभग 90 % कार्य पूरा हो चुका है।

कब मिलेगा चंद्रपुर जिले को लाभ ?

गोसीखुर्द परियोजना के तहत महाराष्ट्र के भंडारा जिले के पवनी तालुका में वैनगंगा नदी पर लगभग 11.35 किलोमीटर लंबा बांध बनाया गया है। इस परियोजना में दो विमोचक, चार पंप सिंचाई योजनाएं और आसोलामेंढा जलाशय के पुनर्निर्माण के माध्यम से भंडारा, नागपुर और चंद्रपुर जिलों की लगभग 2,50,800 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई का लाभ मिलेगा। लेकिन यह परियोजना कब पूरी होगी और इसका लाभ कब चंद्रपुर जिले के किसानों को मिलेगा ? यह सवाल बीते 35 वर्षों से कायम है।

चंद्रपुर जिले में बाढ़ के लिए जिम्मेदार   

गोसीखुर्द में निर्मित राष्ट्रीय इंदिरासागर परियोजना वैनगंगा नदी पर स्थित है। यह एक विशाल नदी है, जिसमें बावनथडी, बाघ, सूर और कन्हान जैसी सहायक नदियां समाहित होती हैं। इन नदियों का पानी वैनगंगा में आता है। साथ ही, मध्य प्रदेश के संजय सरोवर, गोंदिया जिले के सिरपुर, पुजारीटोला, कालीसराट, धापेवाडा और अंतरराज्यीय बावनथडी परियोजनाओं के साथ-साथ कन्हान नदी पर स्थित पेंच, तोतलाडोह, पवनारखैरी और चवराई परियोजनाओं का पानी भी गोसीखुर्द परियोजना में एकत्र होता है। सामान्य दिनों में इससे कोई खतरा नहीं होता, लेकिन भारी बारिश के दौरान जब इन सभी परियोजनाओं का पानी छोड़ा जाता है, तो पूरा भार अकेले गोसीखुर्द परियोजना पर आ जाता है। यदि एक साथ अधिक पानी छोड़ा जाता है, तो गढ़चिरौली और चंद्रपुर जिलों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

चंद्रपुर जिले में 2,632 हेक्टेयर कृषि भूमि अधिग्रहित

इस परियोजना के कारण भंडारा जिले के 34 गांव पूरी तरह और 104 गांव आंशिक रूप से प्रभावित हुए हैं। नागपुर जिले के 85 गांव भी प्रभावित हुए हैं। भंडारा जिले में 12,475 हेक्टेयर में से 12,361 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की गई है, नागपुर जिले में 33.36 हेक्टेयर में से 27.66 हेक्टेयर और चंद्रपुर जिले में 2,682 हेक्टेयर में से 2,632 हेक्टेयर कृषि भूमि का अधिग्रहण किया गया है।

चंद्रपुर जिले के 1,41,463 हेक्टे भूमि को सिंचाई का इंतजार !

भंडारा, नागपुर और चंद्रपुर जिलों के लिए यह एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसकी सिंचाई क्षमता ढाई लाख हेक्टेयर है। इसमें भंडारा जिले की 89,856 हेक्टेयर, नागपुर जिले की 19,481 हेक्टेयर और चंद्रपुर जिले की 1,41,463 हेक्टेयर भूमि सिंचाई के तहत आएगी। परियोजना के तहत दो नहरें बनाई गई हैं—बाईं नहर की लंबाई 23 किलोमीटर और दाईं नहर की लंबाई 99 किलोमीटर है। यह परियोजना पिछले 35 वर्षों से धन की कमी के कारण अधूरी पड़ी है। इस पर केंद्र सरकार से तत्काल बातचीत या संघर्ष की आवश्यकता है, लेकिन ऐसा कोई प्रयास होता हुआ नहीं दिख रहा है। यदि ऐसा कुछ हो रहा है, तो सिंचाई मंत्री को इस बारे में जानकारी देनी चाहिए।

विदर्भ में सिंचाई की कमी क्यों ?  

371(2) के तहत विदर्भ में सिंचाई की कमी को दूर करने की मांग पहले विधान परिषद में उठाई जाती थी। उस समय कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस की सरकार थी, और भाजपा विपक्ष में थी। लेकिन जब भाजपा सत्ता में आई, तो यह मुद्दा अपने आप भुला दिया गया। आज भी सिंचाई की स्थिति वैसी ही बनी हुई है, जैसी गोसीखुर्द परियोजना की है। असल में, विदर्भ में सिंचाई की कमी क्यों है और इसे कैसे हल किया जा सकता है, इस पर गंभीर अध्ययन और विचार-विमर्श नहीं किया जाता। पूर्व विदर्भ से पश्चिम विदर्भ में पानी स्थानांतरित करने के लिए नहरों, पाइपलाइनों और जल भंडारण सुविधाओं जैसे बुनियादी ढांचे में भारी निवेश की आवश्यकता है। इस विकास की योजना सावधानीपूर्वक बनाकर इसे चरणबद्ध तरीके से लागू करना जरूरी है।

विदर्भ के राजनेता सिंचन पर चिंतित नहीं   

पानी के प्रवाह को मोड़ने से नदी के प्रवाह में बदलाव और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इससे पूर्व विदर्भ की जैव विविधता पर असर पड़ सकता है, जिससे पारिस्थितिक असंतुलन उत्पन्न होने की आशंका है। किसी भी अंतर-घाटी जल हस्तांतरण के लिए जल अधिकारों से संबंधित जटिल कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। कानूनी विवादों से बचने के लिए, जल वितरण को न्यायसंगत बनाने के लिए स्थानीय समुदायों और सरकारी संस्थानों के साथ संवाद करना आवश्यक है, लेकिन ऐसा होते हुए नहीं दिखता। आज की राजनीति को देखते हुए, यह नहीं लगता कि सरकार या विदर्भ के राजनेता इस मुद्दे को लेकर बहुत चिंतित हैं।

गोसीखुर्द का असर और महत्व क्या है ?  

सकारात्मक प्रभाव :

1. सिंचाई सुविधा :  

– इस बांध से वर्धा, वैनगंगा और प्राणहिता नदियों के जल को उपयोग में लाकर सिंचाई की सुविधा बढ़ी है।

– इससे चंद्रपुर जिले की कृषि को लाभ हुआ है, खासकर धान और अन्य फसलों की उत्पादकता में वृद्धि हुई है।

2. जल आपूर्ति :

– गोसीखुर्द बांध से जल आपूर्ति होने के कारण चंद्रपुर जिले में पेयजल और औद्योगिक उपयोग के लिए पानी की उपलब्धता बढ़ी है।

– खासकर चंद्रपुर शहर और उसके आस-पास के उद्योगों को इसका लाभ मिलता है।

3. बिजली उत्पादन : 

– इस परियोजना से जलविद्युत उत्पादन किया जाता है, जिससे जिले की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सहायता मिलती है।

नकारात्मक प्रभाव :

1. डूब क्षेत्र और विस्थापन :  

– इस बांध के कारण कई गांव जलमग्न हो गए, जिससे हजारों लोगों को अपना घर-बार छोड़कर दूसरी जगह बसना पड़ा।

– पुनर्वास और मुआवजे की प्रक्रिया में कई समस्याएं आईं, जिससे स्थानीय लोग असंतुष्ट हैं।

2. पर्यावरणीय प्रभाव :  

– डूब क्षेत्र में जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, कई वन क्षेत्र और प्राकृतिक आवास नष्ट हो गए।

– वर्धा नदी पर इस बांध के कारण जल प्रवाह प्रभावित हुआ, जिससे नदी के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव आया।

3. बाढ़ और जलभराव :

– गोसीखुर्द बांध के जल प्रबंधन में कभी-कभी गड़बड़ी होने से चंद्रपुर जिले के निचले इलाकों में बाढ़ आ जाती है, जिससे फसलों और संपत्तियों को नुकसान पहुंचता है।

बाढ़, विस्थापन और पर्यावरणीय प्रभाव की अनदेखी

गोसीखुर्द बांध से चंद्रपुर जिले को सिंचाई, जल आपूर्ति और बिजली उत्पादन के रूप में कई लाभ हुए हैं, लेकिन इसके कारण विस्थापन, पर्यावरणीय प्रभाव और बाढ़ जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हुई हैं। बेहतर जल प्रबंधन और पुनर्वास नीति से इन समस्याओं को कम किया जा सकता है।

विदर्भ में सिंचाई की समस्या

वर्षों से सरकारें सिंचाई अनुशेष (बैकलॉग) को दूर करने की बात कर रही हैं, लेकिन इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। सिंचाई प्रोजेक्ट के लिए बुनियादी ढांचे, जैसे कि नहरों, पाइपलाइनों और जल भंडारण प्रणालियों में भारी निवेश की जरूरत है। हालांकि, यह विकास संतुलित रूप से और चरणबद्ध तरीके से होना चाहिए। पूर्व विदर्भ के जल संसाधनों को पश्चिमी विदर्भ में स्थानांतरित करने से पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ सकता है। साथ ही, जल अधिकारों को लेकर कानूनी विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। बदलते जलवायु परिदृश्य को देखते हुए, ऐसी परियोजनाओं की दीर्घकालिक स्थिरता पर भी सवाल उठते हैं।

नदी जोड़ परियोजनाओं का इतिहास

1980 में जल संसाधन मंत्रालय ने जल हस्तांतरण के लिए ‘राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना’ (NPP) बनाई थी, जिसमें देशभर की 37 नदियों को जोड़ने का विचार था। इस योजना का उद्देश्य था कि अधिक जल वाले क्षेत्रों से पानी को कम जल वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाए। 1972 में तत्कालीन सिंचाई मंत्री के.एल. राव ने ‘गंगा-कावेरी नहर’ परियोजना का प्रस्ताव रखा था। इस योजना के तहत गंगा से 60,000 क्यूसेक पानी उठाकर 2,640 किमी लंबी नहर के माध्यम से कावेरी नदी तक पहुँचाया जाना था, लेकिन इसे अव्यवहारिक मानकर खारिज कर दिया गया।

क्या इन परियोजनाओं में घोटाले हो रहे हैं?

सिंचाई घोटाले अक्सर बड़े पैमाने पर होते हैं। गोसीखुर्द और अन्य परियोजनाओं में भ्रष्टाचार की कई खबरें सामने आ चुकी हैं। महाराष्ट्र में सिंचाई परियोजनाओं पर अरबों रुपये खर्च होने के बावजूद सिंचाई क्षमता में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई। सरकार को इन परियोजनाओं की प्रगति और वित्तीय प्रबंधन पर पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए। साथ ही, वैकल्पिक जल संरक्षण उपायों, जैसे कि वर्षा जल संचयन और जल पुनर्भरण, को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

गुजरात पर ध्यान, महाराष्ट्र की घोर अनदेखी

पिछले साल लोकसभा में राष्ट्रवादी कांग्रेस शरद पवार गुट के सांसद अमोल कोल्हे और भास्कर भगरे ने महाराष्ट्र समेत देशभर में नदी जोड़ परियोजनाओं को लेकर लिखित सवाल किया था। इसके जवाब में तत्कालीन जलशक्ति मंत्री सी.आर. पाटील ने बताया कि दमनगंगा-पिंजल नदी जोड़ परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार है, जिससे मुंबई की जल आपूर्ति सुचारू होगी। इसी तरह पार-ताप्ती-नर्मदा नदी जोड़ परियोजना का भी DPR तैयार किया गया है। ये दोनों परियोजनाएँ महाराष्ट्र और गुजरात के बीच अंतरराज्यीय हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट किया कि वैनगंगा-गोदावरी नदी जोड़ परियोजना का प्रस्ताव महाराष्ट्र सरकार द्वारा रद्द कर दिया गया है। इसके अलावा, महाराष्ट्र में 20 राज्य-स्तरीय नदी जोड़ परियोजनाओं की रिपोर्ट पहले से तैयार थी, लेकिन अब तक उनकी कोई प्रगति नहीं हुई। सवाल यह उठता है कि सिर्फ गुजरात से जुड़ी दो परियोजनाएँ ही क्यों पूरी हो रही हैं, जबकि अन्य 18 परियोजनाओं का क्या हुआ?

नदी जोड़ परियोजनाओं एक छलावा !

पिछले साल लोकसभा में जलशक्ति मंत्री सी.आर. पाटील ने बताया था कि देशभर में 30 अंतरराज्यीय नदी जोड़ परियोजनाओं पर काम चल रहा है, जिनमें से दो महाराष्ट्र में हैं। इसके अलावा, 20 राज्य-स्तरीय परियोजनाओं का भी समावेश किया गया था, लेकिन इनमें से कुछ परियोजनाओं को बाद में रद्द कर दिया गया। इन परियोजनाओं से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिससे जलवायु असंतुलन हो सकता है। स्थानीय समुदायों का विस्थापन होगा और सांस्कृतिक ढांचे पर असर पड़ेगा। इन परियोजनाओं की लागत अत्यधिक होती है, जिससे वित्तीय भार बढ़ता है। जलप्रवाह में बदलाव से जलीय जीवन प्रभावित हो सकता है। जल वितरण को लेकर राज्यों के बीच विवाद हो सकते हैं। महाराष्ट्र की नदी जोड़ परियोजनाएँ अधूरी पड़ी हैं, जिनमें से कई को रद्द कर दिया गया है। इस क्षेत्र में सिंचाई की गंभीर समस्या बनी हुई है, जबकि गोसीखुर्द जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाएँ भी अभी तक पूरी नहीं हो पाई हैं। इन परियोजनाओं की पारदर्शिता, वित्तीय प्रबंधन और दीर्घकालिक प्रभावों पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक है।